आखिर क्या थी महात्मा विदुर की अंतिम इच्छामृत्यु से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने क्या विदुर की उस अंतिम इच्छा को पूरा किया था या नहीं
आखिर क्या थी महात्मा विदुर की अंतिम इच्छा
मृत्यु से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने क्या विदुर की उस अंतिम इच्छा को पूरा किया था या नहीं
महाभारत काल के महत्वपूर्ण पात्रों की जब जब बात की जाती है
तब उसमे महात्मा विदुर का नाम भी लिया जाता है
विदुर जी हस्तीनपुर के प्रधानमन्त्री कौरवो और पांडवो के काका
और धृतराष्ट्र और पाण्डु के भाई थे परन्तु उनका जन्म एक दासी के गर्भ से हुआ था
इतनी महत्वपूर्ण भूमिका होने के बाद भी महात्मा विदुर महाभारत में अपना कोई अस्तित्व कायम न कर सके
विदुर जी को महाभारत के केंद्रीय पात्रों में से एक माना तों गया किन्तु फिर भी अधिकतर लोग उन्हें नहीं जानते
उनकी पहचान सदैव हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री के रूप में की जाती है
जिन लोगो ने महाभारत ग्रन्थ को विस्तार से पढ़ा है उन्हें भी यह ज्ञात होगा कि विदुर जी पांडवो और कौरवों के काका थे
धृतराष्ट्र और पांडू के भाई थे दरअसल विदुर किसी रानी या महारानी के नहीं बल्कि एक दासी के पुत्र थे
हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर अपनी दोनों रानीयों के संतान सुख से असमर्थ हुए थे
और अंत में क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए
ऐसे में हस्तिनापुर का अगला रखवाला कौन होगा इसके लिए वेद व्यास जी कि मदद ली गयी
वेद व्यास ने दोनों रानियों को संतान सुख का आशीर्वाद देने के लिए बुलाया
किन्तु उनके डर से रानियों ने दासी को भेज दिया यही कारण है कि पहली संतान दासी के गर्भ से हुई थी
किन्तु एक दासी कि संतान को एक राजा का दर्जा देना उचित न समझते हुए विदुर को कभी भी यह दर्जा प्राप्त नहीं हुआ
जिसके को हकदार थे, कहा जाता है कि वेदव्यास जी ने दासी के गर्भ से होने वाली संतान को विशेष वर दिया था
उनका कहना था कि यह संसार का सबसे बुद्धिमान एवं सर्वगुण संपन्न व्यक्ति होगा
वही महाभारत ग्रन्थ के अनुसार विदुर जी को धर्मराज का स्वरुप माना गया है उनकी सूझबूझ के चलते ही विदुर को हस्तिनापुर का प्रधानमन्त्री घोषित किया गया था
कहते है विदुर ने महाभारत युद्ध लड़ने से इंकार कर दिया था किन्तु मृत्यु से पहले उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से एक वरदान माँगा था
यह उस समय कि बात है जब महाभारत युद्ध चल रहा था विदुर श्रीकृष्ण के पास गए और उनसे निवेदन किया कि
वह उनकी अंतिम इच्छा को सुने और उसे पूरा करें उन्होंने कहाँ हे प्रभु मै धरती पर इतना प्रलयंकारी युद्ध देखकर बहुत ही आत्म ग्लानी का अनुभव कर रहा हूं
मेरी मृत्यु के बाद अपने शरीर का एक भी अंश इस धरती पर नहीं छोड़ना चाहता इसीलिए मेरा आपसे यह निवेदन है कि
मेरी मृत्यु होने पर न मुझे जलाया जाए न मुझे दफनाया जाए और न ही जल में प्रवाहीत किया जाये
ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण मंद मंद मुस्काये और स्वयं विदुर से पूछा तों आखिर आप क्या चाहते है
तब विदुर ने कहाँ प्रभु मेरी मृत्यु के बाद मै चाहते हूं कि मेरा शहरी आपके सुदर्शन चक्र में परिवर्तित हो जाये या उसमे विलीन हो जाये
यही मेरी अंतिम इच्छा है भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी अंतिम इच्छा को स्वीकार किया
और उन्हें यह आश्वासन दिया कि वह उनके इस शरीर को धरती पर रहने नहीं देंगे
फिर जब महाभारत युद्ध समाप्त हुआ युद्ध बीते हुए कुछ दिन हुए पांचो पांडव विदुर से मिलने के लिए वन में पहुंचे
तों युधिष्ठिर को देखते ही विदुर जी ने अपने प्राण उसी समय त्याग दिए
और कहते है कि यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण कि ही लीला थी
यह भी कहाँ जाता है कि विदुर जी किसी और में नहीं बल्कि स्वयं युधिष्ठिर में ही समाहित हो गए थे
क्योंकि युधिष्ठिर और विदुर दोनों ही धर्मराज के अवतार माने जाते है
कहते है युधिष्टिर के लिए यह घटना बहुत ही अजीब थी
वह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर यह क्या हुआ
उन्होंने सोचा इसका घटना का हल और कारण तों सिर्फ और सिर्फ श्रीकृष्ण ही बता सकते है
कहते है जब भगवान श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर स्वयं मिले तों युधिष्ठिर कि दुविधा को देखकर भगवान मुस्कुराये और बोले हे युधिष्ठिर
ये समय चिंता का नहीं है विदुर धर्मराज के अवतार थे तुम भी स्वयं धर्मराज हो इसीलिए प्राण त्याग कर वो स्वयं तुम में ही समाहित हो गए
लेकिन अब मै विदुर को दिया हुआ वरदान पूरा करने आया हूं
यह कहकर श्रीकृष्ण ने विदुर के शव को सुदर्शन चक्र में परिवर्तित कर दिया
और उनकी अंतिम इच्छा को पूरा किया और उनकी आत्मा स्वयं धर्मराज में विलीन हो गयी
तों इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने विदुर जी कि अंतिम इच्छा को पूरा किया.
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