परशुराम जी के वो 4 शक्तिशाली शिष्य जिनको देख स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी चौक गए।



परशुराम जी के वो 4 शक्तिशाली शिष्य जिनको देख स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी चौक गए। 

पहले जो शिष्य है वो तो स्वयं ही भगवान के अवतार है ।

रामायण और महाभारत ये दो धर्म गाथाएं जिसमे भगवान विष्णु के ऐसे भयानक शक्तिशाली अवतार मौजूद है जिन्हे क्रोध दिलाने से स्वयं देवता भी कांप उठते थे। 


जिनकी शक्ति के समक्ष कई सारी अक्षौनीय सेना भी धरती में समा गई थी । जिन्होंने अपने पिता के खून का बदला 64 क्षत्रीय राजवंशीयो को मारकर लिया था ।

और उनके इसी क्रोध को शांत करवाने के लिए खुद बजरंग बली ने उनसे कई महीनो तक युद्ध किया था। 

हम बात कर रहे भगवान विष्णु के अवतार यानि भगवान परशुराम जी की । 

जिनकी शक्ति की कई गाथाएं आज भी जोश जगा देती है ।

जो 8 चिरंजीवियों में से एक है और आज भी इस धरती पर विराजमान है ।

कहते है परशुराम जी बहुत ही क्रोधित स्वभाव के है और अपने क्रोध को शांत करने के लिए उन्होंने महादेव का यज्ञ करने की ठानी ।

उन्होंने अपनी शक्तियों का सही उपयोग करने के लिए शिक्षा देने की ठानी।

तब परशुराम जी ने तीन ऐसे शिष्यों को शिक्षा दी । जिनको हराने के लिए खुद भगवान श्रीकृष्ण को भी छल करना पड़ा ।

परशुराम जी के ऐसे दिग्विजय शिष्य जो बेहद ही शक्तिशाली थे । और यदि भगवान श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र में न खड़े होते तो ये तीनों शिष्य बिना किसी सेना के ही महाभारत युद्ध को 5 दिन में ही समाप्त कर देते। 

जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा माधव यदि इन महारथी योद्धाओं को छल से न मारा जाता तो क्या होता। 

और इस युद्ध का क्या परिणाम निकलता।  

तब भगवान श्रीकृष्ण कहते है पार्थ्य यदि इन योद्धाओं की मृत्यु छल से न होती ।

तो इन्हे मारना असंभव था। क्योंकि इन तीन महायोद्धाओं को पूरे अस्त्र और शस्त्रों का ज्ञान था ।

यमराज का पाश हो या इंद्र का बज्र इनको कोई भी अस्त्र नही काट सकता था ।

परशुराम जी के तीन महान शिष्य थे । लेकिन एक ऐसा भी शिष्य होगा जो भविष्य में जन्म लेगा ।

जिसका इंतजार खुद 8 चिरंजीवी कर रहे है यहां तक कि भगवान परशुराम जी भी उन्ही का इंतजार कर रहे है ।

ताकि उनको शिक्षा और दीक्षा दी जा सके । 

तो चलिए जानते है कि आखिर कौन है वो 4 शक्तिशाली शिष्य ।

पहले नंबर पर मौजूद है भीष्म पितामह यानी देवरत जो अपनी भीषण प्रतिज्ञा के कारण भीष्म नाम से विख्यात हुए ।

जिन्होंने जब भी युद्ध के लिए शस्त्र उठाए तो सामने वाले की रूह कांप गई। राजा शांतनु और माता गंगा के पुत्र भीष्म जिन्होंने आजीवन हस्तिनापुर को एक रक्षक के रूप में सहयता दी। 

जिन्होंने न सिर्फ कंस जैसे योद्धा को हराया अपितु खुद अपने महान गुरु परशुराम जी के साथ कई महीनो तक युद्ध किया ।

जिसका कोई भी निष्कर्स नही निकला खुद परशुराम जी ने इन्हे असंख्य अस्त्र शस्त्र का ज्ञान दिया था। 

सिर्फ यही नहीं कहते है भीष्म पितामह ने जब कुरुक्षेत्र का युद्ध लड़ा तब वह हर रोज हजारों पांडव सैनिकों का वध करते थे ।

खुद भीष्म पितामह की शक्ति के बारे में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते है क्या तुम्हे ज्ञात है पार्थ्य जब महामहिम भीष्म ने स्वयं सूर्य देव को ललकारा था। 

तब अर्जुन कहते है माधव आखिर कोई कैसे सूर्य देव को ललकार सकता है ।

जिनसे पूरा का पूरा संसार प्रकाश मई हो जाता है। 

तब भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि वो ऐसा कर सकते थे क्योंकि महामहिम की शक्ति उनसे भी ज्यादा अधिक थीं ।

सिर्फ यही नहीं उन्हे इच्छा मृत्यु का भी वरदान है और कहते है पांडवो को उन्होंने अपनी मृत्यु का रहस्य बताया था जिसके चलते जल्द ही पांडवो ने उन्हे बाणों की शैय्या पर लेटा दिया था। 

और इस तरह महाभारत खत्म होने के उपरांत सूर्य उत्तरायण हुआ और भीष्म पितामह संसार को छोड़कर चले गए ।

अब बात करते है परशुराम जी के दूसरे शिष्य की...

जो बेहद ही शक्तिशाली थे वो कोई और नहीं बल्कि खुद पांडवो और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य थे ।

कहते है गुरु द्रोणाचार्य के पास इतनी शक्ति थी कि वह अपने धनुष को छोड़कर युद्ध करते तब भी वह पांडवो की आधी सेना का विध्वंश कर सकते थे ।

वो भी सिर्फ अपने हाथो के बलबूतो पर । गुरु द्रोण भी कई अस्त्र शस्त्र के ज्ञाता थे ।

उनमें इतना बल था कि वह अकेले ही कई राज्यों को जीतने की क्षमता रखते थे । उन्हे भी गुरु परशुराम जी से कई सारे असंख्य अस्त्र शस्त्र की प्राप्ति हुई थी ।

द्रोणाचार्य ही दोनो तरफ की सेनाओं को ज्ञान देने वाले गुरु माने जाते है इनके पास हर अस्त्र को चलाने का ज्ञान था। 

जिसमे नारायण अस्त्र, पशुपताश्त अस्त्र, ब्रह्मास्त्र भी शामिल है । वैसे तो किसी भी युद्ध में इन्हे सीधे तौर पर पराजित नहीं किया सकता था । 

तब भगवान श्रीकृष्ण ने भीम से कहकर एक अस्वत्थमा नामक हाथी को मरवा दिया और हर तरफ खबर फैला दी कि अस्वत्थामा मारा गया। 

यह सुनकर द्रोणाचार्य ने हथियार डाल दिए और तब दृष्टद्युम ने जो की स्वयं पांचाल देश के राजा द्रुपद के पुत्र थे उन्होंने द्रोणाचार्य का वध कर दिया। 

द्रोणाचार्य को छल से ही मारा गया । अन्यथा इन्हे मार पाना किसी के भी बस की बात नही थी ।

लेकिन अब बात करते है परशुराम जी के तीसरे और उनके प्रिय शिष्य की..


वो कोई और नहीं बल्कि महारथी सूर्यपुत्र कर्ण थे।  कर्ण ने भी भले ही परशुराम जी से झूठ बोलकर शिक्षा ली थी । लेकिन उन्हें परशुराम जी का सबसे प्रिय शिष्य माना जाता है ।

यदि वो पांडवो के पक्ष में होते तो इस युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण की कोई आवश्यकता ही नहीं थी ।

स्वयं अंग राज कर्ण ही लाखो अक्षौणीय सेना के बराबर थे जिन्होंने इंद्र देव को अपने मात्र तीन बाणों से भयभीत कर दिया था ।

जिनके सम्मान से बड़ी उनकी दान वीरता थी । जिनसे समाज ने बाल पन में ही घृणा की तब दुर्योधन ने उनके अस्त्र का और उनके जीवन का सम्मान किया ।

जिस प्रकार कर्ण ने उनका त्याग नही किया और मृत्यु को हस्ते हस्ते स्वीकार किया । कर्ण में ही नही बल्कि उनके बाणों में भी इतनी शक्ति थी कि वो बजरंग बली के होते हुए भी अर्जुन के रथ को तीन उंगल पीछे खिसकाया करते थे। 

वो भी सिर्फ एक बार नही बल्कि असंख्य बार उन्होंने ऐसा ही किया था । अर्जुन का रथ जिसकी ध्वजा पर स्वयं बजरंग बली विराजमान थे और जिनके सारथी स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे ।

सिर्फ यही नहीं जिस जरासंध को मारने के लिए भीम को इतना समय लग रहा था जिसे भीम ने खुद भगवान श्रीकृष्ण की सहयता से मारा था ।

वो आसानी से कर्ण के हाथो मारा जाता । कर्ण ने कई बार जरासंध को परास्त भी किया था ।

कर्ण एक ऐसा योद्धा था जिसको बिना किसी आवश्यकता के जरासंध को परास्त करना उसके लिए बहुत ही मामूली सी बात थी ।

उन्हे ज्ञात था कि जरासंध की मृत्यु कैसे होगी परंतु कर्ण ने मित्रता के कारण जरासंध को जीवित छोड़ दिया। 

कर्ण की तारीफ खुद भगवान श्रीकृष्ण भी किया करते थे ।
वो जानते थे कि कर्ण बेहद ही शक्तिशाली हैं ।

वो केवल छल और छल की सहायता से ही मारा जा सकता है ।
कर्ण बचपन से ही सूर्यदेव के आशीर्वाद के रूप में मिले कवच और कुंडल के साथ जन्मे थे ।

जिसे छल का सहारा लेकर खुद देवराज इंद्र ने निकलवा लिया ।

अगर युद्ध के समय वो कर्ण के साथ होते तो शायद कर्ण को हरा पाना किसी के भी बस की बात नही थी ।

लेकिन कहते है कि कर्ण की मृत्यु के पीछे एक श्राप था जो खुद उनके गुरु परशुराम जी ने दिया था । 

जब उन्हें पता चला कि कर्ण ने झूठ बोलकर शिक्षा ग्रहण की है तब उन्हे विद्या भूलने का श्राप स्वयं परशुराम जी ने दिया ।

सिर्फ यही नहीं कर्ण ने परशुराम जी से कई सारे शक्तिशाली अस्त्र शस्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था ।

जिसे उन्होंने समय समय पर उपयोग भी किया।  लेकिन अंत में वो अधर्म की राह पर चल पड़े थे जिसकी वजह से उनका भी छल पूर्वक वध हुआ ।

अब बात करते है परशुराम जी के आखिरी और सबसे शक्तिशाली शिष्य की जो स्वयं भगवान का अवतार होंगे है। 

जो स्वयं भगवान विष्णु के 10वे अवतार होंगे । हम बात कर रहे है भगवान कल्कि की ।

श्रीमद् भगवद गीता में यह वर्णित है कि संभल क्षेत्र में एक ब्राह्मण के घर कल्कि अवतार का जन्म होगा ।

जिनके गुरु कोई और नहीं बल्कि 8 चिरंजीवियो में से एक और इस धरती पर अभी भी मौजूद स्वयं गुरु परशुराम जी होंगे ।

जो उन्हे शिक्षा दीक्षा देंगे और उन्ही से उन्हे प्राप्त होंगे कई सारे असंख्य अस्त्र शस्त्र। 

कल्कि अवतार के बारे में तो हम सब जानते ही है के कलयुग के अंत में स्वयं कली पुरुष राक्षस को मारने के लिए ही भगवान विष्णु 10वा अवतार लेंगे जो कल्कि अवतार होंगे ।

जिनके गुरु स्वयं परशुराम जी होंगे ।

तो यही थे परशुराम जी के वो 4 सबसे शक्तिशाली शिष्य इनमे से आपको सबसे पसंदीदा शिष्य कौन लगता है हमे कमेंट में जरूर बताएं ।

और अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे सबके साथ सांझा जरूर करे 

Comments