क्या सचमुच भगवान श्री कृष्ण का विराट स्वरुप भगवान शिव यानी की देवो के देव महादेव से भी बड़ा है!




क्या सचमुच भगवान श्री कृष्ण का विराट स्वरुप भगवान शिव यानी की देवो के देव महादेव से भी बड़ा है!

आखिर क्या है इस विराट रूप के पीछे की सच्चाई

भगवान विष्णु के बारे मे तो आप सभी ने सुना होगा लेकिन कभी आपने भगवान श्री महाविष्णु के विश्व स्वरुप को अच्छे से समझने की कोशिश की है अगर आप भगवान विष्णु के विश्व स्वरुप के इस कॉन्सेप्ट को दिल से समझ लोगे तो इस मनुष्य जीवन का उद्देश्य आपको अच्छे से समझ मे आ जायेगा!

अगर आप भगवान विष्णु के विश्व स्वरुप को दिमाग़ मे सोचते हुए इसको पढ़ोगे तो मै आपको यह बता दूँ  के इस लेख के अंत तक आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे!

इतना ही नहीं श्रीहरि विष्णु के विश्व स्वरुप को समझने वाला मनुष्य इस संसार के प्रति देखने का नज़रिया बदल देता है!


आगे बढ़ने से पहले सबसे पहले ये जान लेते है कि आखिर विश्व स्वरुप का मतलब क्या होता है!

दोस्तों विश्व स्वरुप का मतलब होता है Universal form यानि कि unity of all gods यदि कोई ऋषि मुनि या योगी मोक्ष प्राप्त करने के लिए तपस्या करते है तब वह सभी लोग श्री महाविष्णु के विराट रूप को ध्यान मे लेते हुए ध्यान करते है

और वैदिक भाषा मे इस प्रक्रिया को धारणा कहते है

तो इस point से हमें यह समझ आता है कि विष्णु जी का विराट रूप इमेजिन करना या सोचना कोई साधारण कार्य नहीं है

दरअसल भगवान विष्णु के इन स्वरूपों को अलग अलग नामो से जाना जाता है जैसे विराटरूप, विश्व स्वरुप, या महाविष्णु सिर्फ यही नहीं

श्रीमद भगवद गीता मे भी भगवान श्रीकृष्ण ने ये सपष्ट रूप से बताया था कि जब भी कही आशा कि अंतिम किरण बुझने लगती है जहां उनके बिना इस संसार कि रक्षा कोई नहीं कर सकता

तब वाह दुष्कर्मियों का विनाश करने के लिए और धर्म कि स्थापना करने के लिए हर युग मे अवतार लेते रहते है

और इसका साफ उदाहरण तो हमें त्रेतायुग और द्वापर्युग मे देखने को मिलता है
जहां उन्होंने स्वयं भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के रूप मे अवतार लिया था

वही श्रीमद भगवद गीता के पहले अध्याय से लेकर दशवे अध्याय के बीच अर्जुन को यह समझ आता है कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है

वैसे हममे से किसी भी मनुष्य ने भगवान विष्णु के विराट स्वरुप को देखा तो नहीं है

लेकिन भगवद गीता के 11 वें अध्याय मे खुद सर्व शक्तिमान ईश्वर का रूप धारण कर उन्होंने विस्तार से होने बारे मे बताया है

और श्रीमद भगवद गीता मे इसका भी वर्णन मिलता है

अर्जुन ने महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण से उनका वास्तविक स्वरुप दिखाने कि प्रार्थना कि थी तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा "हे पार्थ्य अब तू मेरे सैकड़ो हज़ारो नाना प्रकारो के अलौकिक रूपों को देख "

तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि दी
अर्जुन को दिव्या दृष्टि प्रदान करने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने समय को रोक दिया

अर्जुन को मिले दिव्य दृष्टि से भूत भविष्य वर्तमान और तीनो लोको को अर्जुन एक साथ देख पा रहे थे

और जिस सर्व शक्तिमान ईश्वर स्वरुप को अर्जुन ने देखा गीता मे उसका वर्णन कुछ इस प्रकार से किया गया है

अब आप भी ध्यान से पढ़िएगा सर्व शक्तिमान ईश्वर स्वरुप को देखकर अर्जुन ने क्या कहा

अर्जुन कहते है हे महाप्रभु आपके अनेको मुख मुझे दिखाई दे रहे है आपके अनेको नेत्र है

आप दिव्य आभूषण पहने हुए है आपने अनेको भुजाओं मे बेहद विक्रांल शस्त्र धारण किये हुए है

आपके शरीर का कोई ओर छोर मुझे दिखाई नहीं दे रहा

मुझे आप आकाश से भी ऊँचे दिखाई दे रहे है

मै आपको चारो ओर देख पा रहा हूँ

मुझे आप हर ओर से मुकुट धारण किये हुए नजर आ रहे है

आपके परम सुन्दर शरीर से मुझे दिव्या सुगंध आ रही है

आकाश मे हजारों सूर्य एक साथ हो तो भी आपके जैसा प्रकाश उत्पन्न नहीं हो सकता
जैसा प्रकाश आपके दिव्या रूप से आ रहा है

वैसा प्रकाश तो मैंने आज तक कभी देखा ही नहीं

हे देव आपके शरीर से सम्पूर्ण देवो और भूतों के समुदायों को देख पा रहा हूँ
मुझे आपके नेत्रों मे सूर्य और चन्द्रमा दिखाई दे रहे है
मै आपके ह्रदय मे कमल के आसन पर बैठे स्वयं ब्रह्मा और स्वयं शेर की खाल पर बैठे महादेव को देख पा रहा हूँ

सम्पूर्ण ऋषि और दिव्य सर्प मुझे आपमें दिखाई दे रहे है

मुझे मुकुट पहना हुआ आपका मुख चारो ओर से दिखाई दे रहा है प्रभु

आप शंख चक्र गदा धारण किये हुए है प्रभु

आपका मुख अग्निसवन प्रतीत हो रहा है
मै समस्त देवताओं और ब्रह्माण्ड को आपके मुख के भीतर देख पा रहा हूँ
मुझे ना तों आपका अंत दिखाई दे रहा है और ना ही मध्य


मुझे अनंत तक आपका विशाल स्वरुप नजर आ रहा है प्रभु
जिसका कोई अंत ही नहीं है

हे सर्व शक्तिमान ईश्वर के स्वरुप मै आपको देख कर धन्य हो गया हूँ


कहते है भगवान श्री कृष्ण के उस विराट स्वरुप को बहुत देर तक देखने के बाद अर्जुन भयभीत होने लगे

और उसके बाद उन्होंने स्वयं भगवान श्री कृष्ण से कहा हे सर्व शक्ति मान ईश्वर आपका ये शरीर आकाश को स्पर्श किये हुए है

आपके इस रूप मे अनेको रंग प्रकाशमान है

आप अपने विशाल मुख को फैलाये हुए हैँ

आपकी चमकती बड़ी बड़ी आँखों को देख कर मेरा मन भयभीत हो रहा है प्रभु

मै धैर्य धारण नहीं कर पा रहा हूँ
मै ही नहीं तीनो लोक आपके इस रूप को देख कर भयभीत हो रहे है

आपके मुख को देख कर मै सभी दिशाओं को भूल गया हूँ

इसलिए हे जगतगुरु हे जगत निवास आप मुझ पर प्रसन्न हो


आपके इस विशाल स्वरुप को देख कर मेरा मन भयभीत हो उठा है

कहते है भगवान श्री कृष्ण के विराट स्वरुप को उस समय देख लेने के बाद अर्जुन भय से काँप रहे थे!

उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था
कि वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण है या कोई और तब अर्जुन ने भगवान के विराटस्वरुप को देखते हुए आगे

कहा आखिर इतने उग्र रूप वाले आप है कौन, देवो मे श्रेष्ट मै आपको नमस्कार कर मै आपसे सिर्फ एक निवेदन करता हूं

मुझे अपने बारे मे आप स्पष्टरूप से बताये क्या आप स्वयं श्रष्टि के रचियता ब्रम्हा से भी बड़े है, क्या आप देवो के देव महादेव से भी बड़े, और सर्वगुण संपन्न है

आखिर विश्व स्वरुप मे आप है कौन, हे जगत गुरु मै आपको नमस्कार करता हू और आपसे सिर्फ एक सवाल पूछता हूं आप केवल अपना नाम बताये

अर्जुन के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए, उसी समय स्वयं भगवान श्रीकृष्ण जो कि विराट स्वरुप मे मौजूद थे

उन्होंने उत्तर देते हुए कहा हे अर्जुन मै सभी लोगो का सर्वनाश करने वाला बढ़ता हुआ महाकाल हूं मै इसी समय इस लोक को नष्ट करने के लिए प्राप्त हुआ हूं

ईश्वर के महाकाल के रूप मे मै आज इस सम्पूर्ण धरती को विनाश कि ओर ले जा रहा हूं
लेकिन तुम्ही हो जो इसे धर्म कि ओर मोड़ सकते हो

अगर तुम अपने शस्त्रों का त्याग कर दोगे तों मुझे न चाहते हुए भी तुम्हारे साथ साथ सभी का विनाश करना होगा

जब ईश्वर ने स्वयं अपने महाकाल स्वरुप का वर्णन किया तब उसके बाद अर्जुन ने भयभीत होते हुए कहा

आप वायु यमराज चन्द्रमा अग्नि वरुण और ब्रम्हा के भी पिता है

अनंत शामर्थ्य वाले आपको मेरा शत शत आदर पूर्वक प्रणाम

पहले कभी न देंखे हुए आपके इस आश्चर्य जनक रूप को देखकर मै चक्कर मे आ रहा हूं

परन्तु मेरा मन भय से व्याकुल हो रहा है इसके बाद स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के विराटरूप बोले हे अर्जुन मैंने अपनी योग शक्ति

से और उसके प्रभाव से अपने परम तेजो मय सभी सीमाओं से परे जिस विराट स्वरुप को मैंने तुम्हे दिखाया है

उसे तुम्हारे अतिरिक्त किसी ने नहीं देखा तुम्ही वो पहले मनुष्य हो जो मुझे इस रूप मे देख पा रहे हो

योगशिक्ति के प्रभाव मे कोई हो या फिर परम तेजो मय कोई हो या फिर कोई नशे मे हो या ध्यान कि मुद्रा मे हो या फिर उग्र तप करें तब भी तुम्हारे अतिरिक्त किसी ने भी मेरा ये स्वरुप नहीं देखा है

मेरे विकराल रूप को देखकर तुम्हे व्याकुलता नहीं होनी चाहिए इसलिए तुम अपना मन शांत रखो और भय से दूर होकर मुझे अपने साथ खड़ा देखो

मेरे शंख चक्र गदा पद्म आयुक्त चतुर्भुज रूप के दर्शन करो और कहते है कि इस तरह भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन कराये

तब जाकर अर्जुन का चित्त मय शांत हुआ और भयमुक्त हुआ
और उसके बाद तों आप सब जानते है कि किस तरह अर्जुन ने महाभारत के युद्ध मे खलबली मचा दी

किस तरह उन्होने पुरे के पुरे कौरव सेना का नाश कर दिया
लेकिन इसका श्रेय सिर्फ अर्जुन को नहीं जायेगा

क्योंकि उनके साथ स्वयं विराटरूप थे जो कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ही थे

अब ऐसे मे सवाल उठता है कि क्या सचमुच भगवान विष्णु के विराटस्वरुप स्वयं देवो के देव महादेव भगवान शिव से भी बड़े है

तों जवाब है हाँ

दरअसल ब्रम्हा जी जो स्वयं श्रष्टि के रचियता है और भगवान विष्णु जो कि श्रष्टि के पालनहार है और संहारक जो कि स्वयं भगवान शिव है

वो किसी और के नहीं बल्कि विराटरूप के ही एक अभिन्न अंग है और विराटस्वरुप के द्वारा ही उनको अलग अलग कार्य सौपे गए है

यही कारण है कि आपने विराटस्वरुप मे स्वयं ब्रम्हा जी यहां तक कि स्वयं देवो के देव महादेव के मुख को भी देखा होगा 

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